घटना के दुसरे दिन सुबह मैं अपने सभी साथियों के साथ अंतिम संस्कार स्थल पर पहुंचा। एक परिवार के 11 माताओं की चिता को देख कर मैं हत्प्रभ रह गया। वही दूसरी ओर 6 चिताए अलग अलग अग्नि में विलीन हो रही थी। डिप्टी CM शर्मा सहित तमाम वरिष्ठ जन अंतिम विदाई में शामिल थे। सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये तो वही घायलों को 50-50 हजार की आर्थिक सहायता की घोषणा की गई। सारी विधियाँ बड़े अच्छे से संपन्न हुई। अन्य मीडिया साथियों की तरह मैं भी अपनी टूटी फूटी भाषा में कवरेज करने लगा पर कमी एक चीज की थी। वीभत्स की सेज पर सजी चिताए भी मानों किसी का इंतेजार कर रही थी।
अंतिम विदाई की क्रिया संपन्न हुई सभी मीडिया साथी, सभी राजनैतिक वरिष्ठ जन अपने-अपने गंतव्य को चले गये. दोपहर तक मैं भी घर पहुँच गया। सभी मीडिया के साथी सहित मैं स्वयं भी थका हुआ था और आराम करने की कोशिश कर रहा था लेकिन ये हृदयविदारक घटना और 11 चिताओं की सेज का ख्याल और उनके किसी के इंतज़ार का मंजर मेरे दिमाग से निकल ही नही रहा था। जैसे तैसे 4.30 बजे तक मैंने सबको फ़ोन लगाना शुरू किया। मैंने सबसे पूछा के कोई वापस जा रहा है क्या सभी सुबह से थक चुके थे इसलिए सभी का जवाब था ना....
मैंने अपने को-फाउंडर फ़याज़ और राज को फ़ोन किया जैसे तैसे फिर से उसी जगह के लिए निकल पड़ा। जब मैं वहा पहुंचा तो वहा वीभत्स की सेज पर सजी माताओं की चिताओं का इंतज़ार खत्म हो गया था। जिनका इंतज़ार वे कर रहीं थी वो उनके साथ थी और होती भी क्यों ना सब के बीच सबका भरोसा और विश्वास हर कोई जीत नहीं सकता। मंजर देख मानो ऐसा लग रहा था की उनकी रूहें भी उनके साथ खड़ी है। युवा नेत्री, जन मानस की आस, विश्वास की भावना, समाज सेविका, माँ, विधायक भावना बोहरा ने जो किया वो कोई दूसरा राजनेता, समाज सेवक शायद ही कर पाये।
भावना बोहरा ने इस सड़क हादसे में मृत हुए माताओं के 24 बेटे-बेटियों को गोद लेकर उनके शिक्षा,विवाह और रोजगार तक की जिम्मेदारी उठाने का विश्वास परिजनों को दिया। संकल्प के खबर मिलते ही देश के तमाम कलम कारो, मीडिया घरानों, प्रबुद्ध जनो ने इस अदम्य साहस के लिए अपने-अपने तरीके से कृतज्ञता व्यक्त की।
मैं सामने ही था सच में भावना बोहरा के ह्रदय स्पर्शी दत्तक ग्रहण के प्रति मेरा उनको प्रणाम है।
कबीरधाम का गौरव शाली इतिहास उनके नाम को अपने अविस्मरणीय पन्नो पर जरुर अंकित करेगा। उन्होंने जिस प्रकार से विश्वास दिया अंत में मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि..
वीभत्स की सेज पर माताओं की रूहें भी आस में रही होंगी विश्वाश जो था उनको....फिर सुकून से हुई होंगी विदा तेरे इस श्रृंगार को देख कर