रायपुर, 23 मई 2024:- कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में पांच लाख ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द कर एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद निर्णय लिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वोट बैंक की राजनीति के तहत मुस्लिम समुदाय को ओबीसी कोटे का लाभ दिया गया है, जो असंवैधानिक है। इस निर्णय के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति में हलचल मच गई है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि 2010 के बाद जारी किए गए सभी ओबीसी प्रमाणपत्र असंवैधानिक हैं और इन्हें तुरंत प्रभाव से रद्द किया जाता है। करीब पांच लाख प्रमाणपत्रों को रद्द कर दिया गया है और इन्हें किसी भी रोजगार प्रक्रिया में मान्य नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने 37 वर्गों को दिए गए ओबीसी आरक्षण को भी रद्द कर दिया है।
इस मामले में छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा है कि उनके राज्य में भी विगत पांच वर्षों में नगरीय निकायों में बड़ी संख्या में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाए गए हैं, जिसकी जांच की जाएगी। शर्मा ने कहा कि फर्जी प्रमाणपत्रों के जरिए आरक्षण का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे।
कोलकाता हाईकोर्ट का यह निर्णय कई लोगों के लिए चौंकाने वाला है, क्योंकि इससे हजारों लोग प्रभावित होंगे जिन्होंने ओबीसी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी, शिक्षा और अन्य लाभ प्राप्त किए थे। कोर्ट ने राज्य सरकार की ओबीसी सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया को गलत और असंवैधानिक करार दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि इस प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं।
हाईकोर्ट के इस फैसले से राजनीतिक माहौल गरमा गया है। विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वोट बैंक की राजनीति के लिए ऐसे कदम उठाए गए हैं, जो अब अदालत द्वारा नकार दिए गए हैं। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही है।
विजय शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में भी ऐसे फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के मामलों की जांच होगी और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि जाति प्रमाण पत्रों का सत्यापन कर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि असली हकदारों को ही आरक्षण का लाभ मिले।
कोलकाता हाईकोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है जो यह दर्शाता है कि जाति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और संवैधानिकता बनाए रखना कितना जरूरी है। इस फैसले ने राज्य सरकारों को एक सख्त संदेश दिया है कि जाति और आरक्षण के मुद्दों पर किसी भी प्रकार की लापरवाही या राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश अस्वीकार्य है।