कवर्धा(बोडला):- आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर, बुधवार को सर्व पितृ अमावस्या के पावन अवसर पर राम घाट कुसुमघटा में पितरों के मोक्ष और पितृदोष निवारण हेतु यजमानों ने पीपल वृक्षारोपण किया। शंखनाद के साथ आरंभ हुए इस कार्यक्रम में यजमानों ने पितरों की विदाई के समय प्राणवायु प्रदान करने वाले पीपल वृक्षों का रोपण किया, जो धार्मिक और पर्यावरणीय दोनों दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पं. रमाकांत तिवारी के सानिध्य में आयोजित इस पवित्र अवसर पर, यजमानों ने पितरों की मुक्ति और उनके दिव्य लोक में स्थान प्राप्ति के लिए विशेष पूजा-अर्चना की। पितरों के सम्मान और उनके मोक्ष के लिए वृक्षारोपण को एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्म माना जाता है, और इस आयोजन के माध्यम से यजमानों ने पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया।
पीपल वृक्षारोपण में यजमानों की भागीदारी
पीपल वृक्षारोपण कार्यक्रम में प्रमुख रूप से शामिल यजमानों में सर्वश्री चंद्रशेखर वर्मा, शिवनाथ वर्मा, भीष्म वर्मा, विष्णु वर्मा, शीतल वर्मा, जलेश गुरू , अम्मर वर्मा, जीवन वर्मा, मोहन वर्मा के बड़े सुपुत्र गुरु उपस्थित रहे। इन यजमानों ने पूरे विधि-विधान से पीपल के पौधे लगाए और पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पितरों के प्रति श्रद्धा और आस्था व्यक्त की।
धार्मिक अनुष्ठान और पितरों की विदाई
पूरे विधि-विधान के साथ पितृ तर्पण और पूजन अनुष्ठान के बाद, यजमानों ने पितृ स्वरुप जनार्दन से प्रार्थना की कि वे सभी पितरों को दिव्य लोक में स्थान प्रदान करें। पं. रमाकांत तिवारी ने कहा कि सर्व पितृ अमावस्या का यह अवसर पितृ दोष निवारण के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन किए गए तर्पण और दान से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
सामाजिक और धार्मिक योगदान
इस कार्यक्रम ने न केवल धार्मिक महत्त्व को उजागर किया, बल्कि समाज को पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण की दिशा में भी प्रेरित किया। राम घाट कुसुमघटा में इस प्रकार के धार्मिक और सामाजिक कार्य से यह संदेश दिया गया कि पितृ तर्पण के साथ-साथ हमें प्रकृति की सुरक्षा और संरक्षण की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
यजमानों की श्रद्धा और आस्था के इस प्रयास ने पितरों की मुक्ति के साथ-साथ समाज को पर्यावरणीय जागरूकता का भी एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। इस कार्यक्रम ने यह दिखाया कि पितरों की सेवा और पर्यावरण की रक्षा एक साथ चल सकते हैं, और हमें दोनों की सुरक्षा के प्रति सचेत रहना चाहिए।
इस प्रकार, सर्व पितृ अमावस्या पर किया गया यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।