कवर्धा:- कवर्धा जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम छिरहा में धूमधाम से मनाया गया हलषष्ठी पर्व, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर पारंपरिक एवं धार्मिक धूमधाम के साथ हलषष्ठी पर्वमनाया गया जिसे स्थानीय भाषा में कमरछठ कहा जाता है, इस पावन पर्व का महत्व संतान की प्राप्ति और सुख-समृद्धि से जुड़ा हुआ है। महिलाओं ने संतान की खुशहाली और दीर्घायु के लिए व्रत रखा, जिसमें नवविवाहित महिलाएं भी शामिल रहीं, जो संतान प्राप्ति की कामना की ।
हलषष्ठी व्रत के दौरान महिलाएं शिव और पार्वती की गली-मोहल्लों में 'सगरी' बनाकर पूजा-अर्चना की । सगरी( नाव) के अगर तालाब में दूध, दही, और विभिन्न पुष्प अर्पित किए । महाभारत के महायोद्धा कर्ण ने भी सूर्य देव की उपासना करते हुए यह व्रत किया था, जिससे उन्हें सूरज के समान तेज और बल की प्राप्ति हुई। आज के दिन पूजा के बाद माताएं अपने बच्चों को तिलक लगाकर आशीर्वाद दिए, और उन्हें दीर्घायु और समृद्धि की कामना की
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता देवकी ने इस व्रत का पालन किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ। इसी परंपरा का पालन करते हुए महिलाएं अपने पुत्र की रक्षा और खुशहाली के लिए हलषष्ठी का व्रत करती हैं। इस व्रत के दौरान भैंस के दूध, दही और घी का सेवन किया जाता है, जबकि गाय के दूध और उससे बने उत्पादों का उपयोग वर्जित होता है।
पूजा संपन्न होने के बाद, महिलाएं सगरी के जल में डुबोए हुए कपड़े के टुकड़े से अपने बच्चों की पीठ पर छः बार स्पर्श कराती हैं, जिसे "पोती मारना" कहा जाता है। माना जाता है कि इस अनुष्ठान से बच्चों को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इस अवसर पर महिलाएं पूजा में चढ़ाई गई लाई, महुए और नारियल को प्रसाद के रूप में एक दूसरे को बांटती हैं।
सूर्यास्त से पहले फलाहार करने की परंपरा
हलषष्ठी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं सूर्यास्त से पहले फलाहार करती हैं। पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। इस भोजन को तैयार करने में खम्हार की लकड़ी का प्रयोग चम्मच के रूप में किया जाता है, और इसे पहले छह प्रकार के जानवरों के लिए अर्पित किया जाता है, जिसके बाद महिलाएं फलाहार करती हैं। इस विशेष भोजन को पत्तों में परोसा जाता है, जो इस पर्व की एक अनोखी परंपरा है।
इस प्रकार, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में हलषष्ठी पर्व की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसमें महिलाओं द्वारा संतान की खुशहाली और समृद्धि के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं।