जनता द्वारा मिनी माता को गुरुमाता के नाम से भी जाना जाता है मिनी माता का जन्म असम में 1913 को नुवांगांव जिले के ग्राम जमुनामुख में हुआ इनका मूल नाम मीनाक्षी ओर माता का नाम मतीबाई था। अकाल की स्थिति में पलायन कर मिनीमाता के दादा जीविकोपार्जन के लिए छत्तीसगढ़ के मुंगेली ग्राम सगुना असम के चाय बागान दौलतपुर में विस्थापित हो गए। मिनीमाता की सातवीं कक्षा तथा प्राइमरी तक स्कूल तक शिक्षा असम में ही हुई इसके बाद मैट्रिक तक की शिक्षा उन्होंने छत्तीसगढ़ से ग्रहण की। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला छत्तीसगढ़ी भाषा का बहुत ही अच्छा ज्ञान था। छत्तीसगढ़ से समाज के प्रति लोगों का हाल-चाल जानने के लिए समाज के धर्मगुरु असम के चाय बागान जाया करते थे ऐसे ही एक समय तत्कालीन गुरु अगमदास जी दौलतपुर पहुंचे जिनकी कोई भी संतान नहीं थी। और महंत ने उनसे पुनः विवाह करने का आग्रह किया था वही महंत बुधारी दास की कन्या मीनाक्षी का विवाह 1932 में गुरु अगमदास जी से हुआ और इस तरह से साधारण परिवार में जन्मी एक कन्या, गुरु पत्नी अर्थात माता पद को कबीरधाम जिले के पंडरिया तहसील अंतर्गत ग्राम झरिया खुर्द में मिनीमाता के पुण्यतिथि पर जिला पंचायत सभापति जल्लू साहू ,मंडल अध्यक्ष गजपाल साहू ,मंडल महामंत्री पदमाराज एवं अनुसूचित जाति मोर्चा महेंद्र बंजारे ,अनुसूचित जाति मोर्चा मंडल पंडरिया, महामंत्री जनक पात्र , अनुसूचित जाति मोर्चा मंडल पंडरिया महामंत्री हेमराय, बुथ अध्यक्ष सम्मत सोनकर एवं सवल दास बारामते झुनवा राम बंजारे , आजू रामलाल ,अंजोर दास, कुंजराम , अश्वनी मोहले , रवि मिरे, भुनेश्वर साकत, नरेंद्र लहरे, धर्मराज बरमाते बिन्नु राम, राकेश बंजारे, धर्मेश बंजारे, मुकेश भास्कर ,मुकेश लहरें ,अनुराग लहरें, मिथिलेश खुटे , विनोद मिरी,पटेल भोजराज पटेल , रविपाटले समारू पटेल बिसनाथ बंजारे, इन सभी कार्यकर्ताओं के द्वारा मां मिनीमाता के पुण्यतिथि पर मां मिनिमता को श्रद्धांजलि दी गई। वही इस पुण्यतिथि पर मां मिनीमाता को श्रद्धांजलि देते समय जिला पंचायत के सभापति जलेश्वर साहू ने बताया कि छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद के नाम से मिनीमाता को जाना जाता है वही मिनी माता का पूरा नाम – मीनाक्षी देवी (मिनीमाता) है
जनता द्वारा मिनी माता को गुरुमाता के नाम से भी जाना जाता है मिनी माता का जन्म असम में 1913 को नुवांगांव जिले के ग्राम जमुनामुख में हुआ इनका मूल नाम मीनाक्षी ओर माता का नाम मतीबाई था। अकाल की स्थिति में पलायन कर मिनीमाता के दादा जीविकोपार्जन के लिए छत्तीसगढ़ के मुंगेली ग्राम सगुना असम के चाय बागान दौलतपुर में विस्थापित हो गए। मिनीमाता की सातवीं कक्षा तथा प्राइमरी तक स्कूल तक शिक्षा असम में ही हुई इसके बाद मैट्रिक तक की शिक्षा उन्होंने छत्तीसगढ़ से ग्रहण की। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला छत्तीसगढ़ी भाषा का बहुत ही अच्छा ज्ञान था। छत्तीसगढ़ से समाज के प्रति लोगों का हाल-चाल जानने के लिए समाज के धर्मगुरु असम के चाय बागान जाया करते थे ऐसे ही एक समय तत्कालीन गुरु अगमदास जी दौलतपुर पहुंचे जिनकी कोई भी संतान नहीं थी। और महंत ने उनसे पुनः विवाह करने का आग्रह किया था वही महंत बुधारी दास की कन्या मीनाक्षी का विवाह 1932 में गुरु अगमदास जी से हुआ और इस तरह से साधारण परिवार में जन्मी एक कन्या, गुरु पत्नी अर्थात माता पद को प्राप्त हुई इसके बाद मिनीमाता गुरु के साथ छत्तीसगढ़ वापस आ गईं। 1955 उपचुनाव जीतकर में सर्वप्रथम महिला सांसद बनने का गर्व प्राप्त हुआ।
1957 में पुनः संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर,बिलासपुर और दुर्ग से जीतकर सांसद बनी।
1962 में बलौदाबाजार क्षेत्र से 52 फीसदी ज्यादा मतों से जीतकर दिल्ली में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व की। हुई इसके बाद मिनीमाता गुरु के साथ छत्तीसगढ़ वापस आ गईं। 1955 उपचुनाव जीतकर में सर्वप्रथम महिला सांसद बनने का गर्व प्राप्त हुआ। 1957 में पुनः संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर,बिलासपुर और दुर्ग से जीतकर सांसद बनी।
1962 में बलौदाबाजार क्षेत्र से 52 फीसदी ज्यादा मतों से जीतकर दिल्ली में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व की।