कवर्धा:- पंडरिया विधानसभा में किसानों को खाद-बीज और KCC की राशि नहीं मिलने पर किसान नेता नीलू चंद्रवंशी ने किसानों की आवाज बुलंदी से उठाई। इसके जवाब में पंडरिया विधायक ने नीलू चंद्रवंशी, जो कि एक किसान का बेटा है, को मानसिक संतुलन खो बैठा करार दिया। मैं आम जनता से पूछना चाहता हूँ कि एक किसान का बेटा अगर किसानों की आवाज उठाता है तो क्या वह मानसिक संतुलन खो बैठा है?
यह पहली बार नहीं है जब पंडरिया विधायक ने किसी को अपमानित किया है। कुछ दिनों पहले सेमरहा में भोजन की व्यवस्था न कर पाने पर जब आदिवासियों ने आवाज उठाई थी, तो उन्हें भी पागल करार दिया गया था। विधायक के इस रवैये में अहंकार की झलक साफ दिखाई देती है।
नीलू चंद्रवंशी का बयान: "किसानों को खेती छोड़कर खाद-बीज के लिए हफ्तों-हफ्तों सोसायटी में बैठना पड़ रहा है। पंडरिया विधायक द्वारा धनबल और सत्ताबल के अहंकार में लगातार आदिवासियों और किसानों का अपमान किया जा रहा है।"
किसान और आदिवासी समुदाय का संघर्ष: पंडरिया विधानसभा के किसान आप जैसे नहीं हैं, जो भावना सेवा संस्थान जैसा NGO बनाकर शासन से करोड़ों की राशि लेकर भ्रष्टाचार से मोटी रकम कमा लेते हैं। किसान तो अपने खून-पसीने से खेत की मिट्टी में फसल उगाते हैं और अनाज पैदा करते हैं। मुश्किल से वे अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी और पढ़ाई-लिखाई का प्रबंध कर पाते हैं।
धनबल और सत्ताबल का दुरुपयोग: पंडरिया विधायक की संपत्ति और काला धन इकट्ठा करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए, चंद्रवंशी ने कहा कि विधायक द्वारा किसानों की आवाज को दबाया जा रहा है और लगातार आदिवासियों और किसानों का अपमान हो रहा है।
समाज का सवाल: क्या किसानों की आवाज उठाना और उनके हक की लड़ाई लड़ना मानसिक संतुलन खो बैठना है? विधायक का यह बयान समाज में आक्रोश का कारण बन गया है और लोग इससे असहमत हैं। किसान और आदिवासी समुदाय अपनी गरिमा और सम्मान की मांग कर रहे हैं।