कुसुमघटाबोडला:- कुसुमघटा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर हाई स्कूल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का आयोजन बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ किया गया। यह आयोजन पिछले 23 वर्षों से अनवरत रूप से विद्यालय में हो रहा है और इस बार भी इसे विशेष धूमधाम से मनाया गया।
उत्सव का शुभारंभ विद्यालय प्रांगण में विद्या की देवी मां सरस्वती एवं मां भारती के छायाचित्र पर पूजन-अर्चन से किया गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य, आचार्य, दीदी जी, एवं समिति के अन्य सदस्यों द्वारा किए गए इस पूजन से पूरे वातावरण में एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ।
पूजन के पश्चात कार्यक्रम की मुख्य प्रस्तुतियों की शुरुआत हुई, जिसमें विद्यालय के भैया-बहनों ने श्रीकृष्ण और राधा के वेशभूषा में सजधज कर मंच पर अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। बच्चों ने भगवान श्रीकृष्ण और राधा की भूमिका निभाते हुए नृत्य और नाट्य प्रस्तुत किया, जिसने उपस्थित सभी दर्शकों का दिल जीत लिया। बच्चों की मनोहारी प्रस्तुतियों ने गांव वालों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया, जिन्होंने इस कार्यक्रम का भरपूर आनंद लिया और बच्चों की प्रशंसा की।
उत्सव का मुख्य आकर्षण दहीहंडी प्रतियोगिता रहा, जिसमें बच्चों ने बड़े उत्साह और जोश के साथ भाग लिया। दहीहंडी फोड़ने की इस प्रतियोगिता में बच्चों ने एकजुट होकर कई प्रयास किए और अंततः विजय प्राप्त की। इस प्रतियोगिता ने बच्चों में टीम भावना, साहस और संयम का विकास किया।
कार्यक्रम में विद्यालय के समस्त आचार्यगण, दीदी जी, प्रधानाचार्य, समिति के सदस्य और बड़ी संख्या में ग्रामीण जन उपस्थित रहे। इस भव्य आयोजन को सफल बनाने में सभी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कार्यक्रम की समाप्ति पर उपस्थित सभी लोगों को भगवान श्रीकृष्ण का प्रसाद वितरित किया गया, जिससे सभी ने आनंदित होकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
सरस्वती शिशु मंदिर हाई स्कूल, कुसुमघटा में मनाया गया यह उत्सव न केवल बच्चों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सफल रहा, बल्कि समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे का संदेश भी प्रसारित किया। ऐसे आयोजन से बच्चों में न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास होता है, बल्कि उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भी अवसर मिलता है।
इस प्रकार, सरस्वती शिशु मंदिर के इस उत्सव ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों का भी बच्चों के समग्र विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है।